जैन धर्म
गौतम बुद्ध के बाद भारत के जिन महापुरुषों ने वैदिक कर्मकाण्ड एवं सामाजिक विषमता पर सबसे ज्यादा प्रहार किया उनमें बुद्ध के बाद महावीर स्वामी सर्वाधिक महत्वपूर्ण थे। जैन धर्म के मान्यता के अनुसार रमहावीर स्वामी से पहले 23 और उपदेशक हुए। महावीर स्वामी 24वें उपदेशक थे। जैन साहित्य में इन्हीं उपदेशकों को तीर्थंकर कहा जाता है। जैन धर्म के संस्थापक या प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे जिन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है। विष्णु पुराण एवं भागवत पुराण में ऋषभदेव को नारायण का अवतार माना गया है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। जो बनारस के राजा अस्वसेन के पुत्र थे। इन तीर्थंकर के शिष्य को निग्रंथ कहा जाता है। इस शब्द का शाब्दिक अर्थ “बंधन रहित” होता है।
जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक महवीर स्वामी को ही मन जाता है। वर्धमान महावीर (72) – वज्जि संघ के लिच्छवि कुल के एक छत्रिय राजकुमार
महावीर स्वामी का जन्म
540 BC (599)
में वैशाली के निकट कुण्ड ग्राम में हुआ था। इसके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता
का त्रिशला था। इसके पिता ज्ञात्रिक क्षत्रिय संघ के प्रधान थे जबकि माता लिच्छवि
गणराज्य के प्रधान चेटक की बहन थी। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। इस शब्द का अर्थ तेजी से आगे बढ़ना या ऊँचाई की
ओर जाना होता है। महावीर की पत्नी का नाम यशोदा था। महावीर की पुत्री का नाम अन्नोजा
(प्रियदर्शिनी) था तथा इस के दामाद का नाम जामिल था। जामिल प्रथम व्यक्ति थे
जिन्होंने जैन संघ में विद्रोह किया था। जैन धर्म की प्रथम भिक्षुणी चंदना थी ओर प्रथम
भिक्षु जामिल था।
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